महाराजगंज न्यूज़: स्टे आदेश के बावजूद जमीन पर कब्ज़ा कर निर्माण करने का आरोप, पीड़ित ने की अपर पुलिस महानिदेशक से शिकायत

स्टे आदेश के बावजूद जमीन पर कब्जे की कोशिश, ग्राम बभनी बुजुर्ग के ओंकारनाथ पांडेय ने की शिकायत-

जनसुनवाई पोर्टल पर अपर पुलिस महानिदेशक गोरखपुर से लगाई गुहार, कोल्हुई पुलिस को कार्रवाई के निर्देश देने की मांग-

बभनी बुजुर्ग/महराजगंज (आनन्द श्रीवास्तव)। जिले के कोल्हुई थाना क्षेत्र के ग्राम बभनी बुजुर्ग निवासी ओंकारनाथ पांडेय ने जनसुनवाई पोर्टल के माध्यम से अपर पुलिस महानिदेशक से न्याय की गुहार लगाई है। उनका आरोप है कि उनके मकान से सटी हुई भूमि, जिस पर पहले से न्यायालय का स्टे आदेश है, उस पर कुछ लोगों द्वारा जबरन निर्माण और कब्जा करने का प्रयास किया जा रहा है।

विवादित जमीन पर चल रहा कानूनी विवाद

पीड़ित ओंकारनाथ पांडेय के अनुसार, गाटा संख्या 150 (नया नंबर 150/1, 150/2, 150/3 व 270 क) उनकी संपत्ति है, जिसमें एक भाग में उन्होंने मकान बना रखा है और अन्य भाग को खाली छोड़ रखा था। इसी खाली भूमि पर गांव के कुछ लोगो द्वारा जबरन कब्जा कर निर्माण कार्य कराया जा रहा हैं।

न्यायालय से मिला है स्टे, फिर भी निर्माण कार्य का प्रयास

पीड़ित ने बताया कि इस विवाद को लेकर उन्होंने पहले ही वर्ष 2015 में सिविल जज जूनियर डिवीजन, फरेंदा की अदालत में वाद दाखिल किया था, जिसमें वर्ष 2019 में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश पारित हुआ था। इसके बावजूद विपक्षी पक्ष द्वारा 13 मई 2025 को निर्माण कार्य करने का प्रयास किये, जिसे उपजिलाधिकारी फरेंदा के आदेश पर कोल्हुई पुलिस द्वारा रुकवा दिया गया।

अफसरों के तबादले के बाद फिर बढ़ा कब्जे का खतरा

पीड़ित का कहना है कि 28 मई 2025 को उपजिलाधिकारी फरेंदा का तबादला हो गया, जिसके बाद 31 मई को विपक्षीगण ने पुनः जेसीबी मशीन और भारी संखया मजदूरों के साथ निर्माण कार्य कराया जा रहा है। इससे तनाव का माहौल बन गया है और मारपीट व बलवे की आशंका उत्पन्न हो गई है।

अपर पुलिस महानिदेशक से कार्रवाई की मांग

ओंकारनाथ पांडेय ने अपनी शिकायत में कोल्हुई पुलिस को तत्काल निर्देशित करने की मांग की है कि वे स्टे आदेश का पालन कराते हुए विपक्षीगण को किसी भी तरह की विधिविरुद्ध गतिविधि से रोकें। साथ ही न्यायालय के आदेशों की अवहेलना करने वालों पर कानूनी कार्रवाई की जाए।

यह मामला न्यायालय के आदेशों के उल्लंघन और प्रशासनिक कार्रवाई की धीमी गति पर सवाल खड़े करता है। समय रहते प्रभावी हस्तक्षेप न होने की स्थिति में कानून-व्यवस्था के बिगड़ने की पूरी आशंका है। ऐसे में प्रशासन को तत्परता दिखानी होगी, ताकि कानून का सम्मान बना रहे और पीड़ित को न्याय मिल सके।

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