नई दिल्ली: देश में जनगणना के साथ जातिवार गिनती शुरू होने का इंतजार खत्म होने जा रहा है. मोदी सरकार ने देश में 17 साल बाद होने जा रही जनगणना को ‘जनगणना-2027’ नाम दिया गया है. यह प्रक्रिया 2 चरणों में होगी और 1 मार्च 2027 को यह पूरी कर ली जाएगी. इस संबंध में 16 जून 2025 को नोटिफिकेशन जारी किया जा सकता है. लोगों की निगाहें इस बात पर टिक गई है कि 2029 का लोकसभा चुनाव नए परिसीमन और महिला आरक्षण के साथ होगा या नहीं, क्योंकि ये दोनों ही फैसला जनगणना पर ही टिका है?
केंद्रीय गृह मंत्रालय के मुताबिक 16 जून को अगली जनगणना को लेकर अधिसूचना जारी किया जा सकता है. पहले चरण में पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में जनगणना एक अक्टूबर 2026 जबकि दूसरे चरण में देश के बाकी राज्यों में एक मार्च 2027 को होगी. जनगणना के प्रोविजनल यानी आतंरिम आंकड़े आने के बाद ही सीटों का परिसीमन शुरू होगा और उसके बाद महिला आरक्षण को अमलीजामा पहनाने का काम होगा. हालांकि, ये नहीं बताया गया है कि जातिगत जनगणना के आंकड़े कब तक आएंगे?
कैसे जुटाए जाएंगे जनगणना के आंकड़े
‘जनगणना-2027’ के लिए सरकार 16 जून 2025 को नोटिफिकेशन जारी करेगी. इसके साथ ही जनगणना की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. जून 2026 को प्रशासकीय सीमाओं को सील करने की अधिसूचना जारी होगी. ऐसे में माना रहा है कि एक अप्रैल 2027 से 45 दिन तक हाउसिंग लिस्टिंग की जाएगी. इसमें लोगों के पक्के और कच्चे मकान के साथ घर में कितने कमरे, बिजली, पानी, शौचालय, गाड़ी, फोन, टीवी, रेडियो आदि की जानकारी जुटाई जाएगी.
इसके बाद जनगणना संबंधी जानकारी- परिवार में कितने सदस्य, कितने पढ़े-लिखे लोग, जन्म स्थान, वैवाहिक जैसी सूचना जुटाने का काम किया जाएगा. ये सारी जानकारी कितने समय में पूरी कर ली जाएंगी, हालांकि ये तय नहीं है.
मोदी सरकार ने नई जनगणना के लिए पहाड़ी क्षेत्र वाले चार राज्य के लिए एक अक्टूबर 2026 और देश के बाकी राज्यों के लिए एक मार्च 2027 को रेफ्रेंस डेट के रूप में तय किया है. मतलब, जनगणना के आंकड़ों के लिए एक मार्च 2027 की तारीख आधार होगी. हालांकि, केंद्र सरकार ने अभी यह नहीं बताया गया है कि जनगणना के आंकड़े कब जारी होंगे. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या जाति जनगणना से जुड़े सभी आवश्यक आंकड़े 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले आ जाएंगे या फिर नहीं?
जनसंख्या के आधार पर सीट परिसीमन
भारत में समय-समय पर जनसंख्या के आधार पर लोकसभा और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्गठन (परिसीमन) किया जाता रहा है. संविधान के अनुच्छेद 82 में प्रत्येक जनगणना के बाद सीटों का पुनर्समायोजन अनिवार्य है, लेकिन पहले 1976 में संवैधानिक संशोधन के बाद लोकसभा में निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या का विस्तार साल 2001 तक के लिए रोक दिया गया था. इसके 2001 में संविधान संशोधन करके इसे वर्ष 2026 तक के लिए फ्रीज कर दिया गया. इसके चलते ही अगले 25 सालों तक परिसीमन नहीं किया गया, लेकिन अब जनगणना 2027 में होने जा रही है तो 2026 की डेट लाइन बाधा नहीं बनेगी.
2027 जनगणना के आंकड़े आने के बाद सीटों का परिसीमन होगा. पहले ये जान लेते हैं कि निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्गठन यानी परिसीमन का अर्थ क्या है. परिसीमन का अर्थ है जनसंख्या के अनुसार देश में लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों और राज्यों की विधानसभा के निर्वाचन क्षेत्रों की संरचना का निर्धारण करना. इसके लिए कानून बनाकर परिसीमन आयोग की स्थापना की जाती है. इस आयोग का गठन साल 1952, 1962, 1972 और 2002 में कानून के जरिए ही किया गया था. आयोग को संविधान द्वारा शक्तियां और स्वायत्तता प्रदान की गई हैं. उनके लिए गए निर्णयों को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती.
जनसंख्या किसी भी निर्वाचन क्षेत्र की सीमा तय करने का मापदंड है. प्रत्येक राज्य को उसकी जनसंख्या के अनुपात में लोकसभा सीटें मिलती हैं. ये ‘एक व्यक्ति, एक वोट’ के फॉर्मूले पर तय होता है. यानी हर वोट का प्रतिनिधित्व सदन में होना चाहिए. औसतन छह विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर एक लोकसभा क्षेत्र. 2001 की जनगणना के आधार पर 2002 में परिसीमन आयोग बना, इसके बाद तय किया गया कि 2026 तक निर्वाचन क्षेत्र यथावत रहेंगे. अब जनगणना 2027 हो रही है तो उसके आंकड़े आने के बाद परिसीमन आयोग का काम शुरू होगा.
जनगणना के आंकड़े से तय होगा प्लान
जातिगत जनगणना 2027 के आंकड़े कब आएंगे, उससे ही आगे की प्रक्रिया शुरू होगी. पिछली जनगणना को देखें तो अंतिम जनसंख्या गणना के आंकड़े जारी होने में लगभग 2 साल लग गए थे. हालांकि, यह देखने वाली बात है कि क्या मोदी सरकार जनगणना 2027 की कोई तारीख बताती है. बेहतर तकनीक और डिजिटल डेटा के इस्तेमाल से अब जनगणना में उतना वक्त लगने की संभावना नहीं है, जितना की पहले लगा करता था. ऐसे में मान लिया जाए कि जनगणना के आंकड़े पहले के मुकाबले जल्द भी आ जाते हैं तो उसके फौरन बाद परिसीमन शुरू हो जाएगा.
जनगणना 2027 के निर्णय की घोषणा होने के साथ परिसीमन पर बहस फिर से शुरू हो गई है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र से जवाब मांगा है और उस पर राज्य के संसदीय प्रतिनिधित्व को कम करने के लिए जनगणना में देरी करने का आरोप लगाया है. बीजेपी ने अब जनगणना को साल 2027 तक टाल दिया है, जिससे तमिलनाडु के संसदीय प्रतिनिधित्व को कम करने की उनकी योजना स्पष्ट हो गई है. इस तरह स्टालिन को लग रहा है कि 2027 जनगणना के आधार पर परिसीमन होगा, जिससे वो अगली जनगणना के आधार पर कराने की बात कर रहे.
सटीक कार्यक्रम अभी अधिसूचित नहीं
हालांकि, मोदी सरकार ने जनगणना के संबंध अभी सटीक कार्यक्रम को अधिसूचित नहीं किया है, जो 16 जून 2025 को नोटिफिकेशन से राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से किया जाएगा, लेकिन संभावना है कि जनगणना का घर सूचीकरण चरण मार्च-अप्रैल 2026 तक शुरू हो जाएगा. यह सितंबर 2026 तक पूरा हो जाएगा और उसके बाद फरवरी 2027 में 21 दिनों में जनगणना की गणना होगी.
मार्च 2027 तक अगर जनगणना की प्रक्रिया पूरी हो जाती है तो दस दिन के अंदर डाटा भी सामने आने लगेंगे. जनगणना के अंतरिम डेटा और फाइनल डेटा के बीच अभी भी कुछ समय का अंतर होगा. सत्यापन के माध्यम से विसंगतियों को दूर करने में छह महीने लग सकते हैं.
2029 का चुनाव परिसीमन और आरक्षण
जनगणना के फाइनल डाटा 2027 के अंत में आ सकता है और 2028 की शुरुआत में भी आ सकता है. इसके बाद ही परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होगी. परिसीमन आयोग के गठन का मार्ग प्रशस्त करने के लिए संसद को परिसीमन अधिनियम पारित करना होगा. परिसीमन आयोग को अपनी फ़ाइनल रिपोर्ट देने में कितना समय लगता यह भी देखना होगा. माना जाता है कि कम से कम 3 से 4 साल का समय लगता है, क्योंकि पिछले आयोग ने 5 साल में रिपोर्ट दी थी.
परिसीमन आयोग 2029 के चुनाव से पहले अपना काम शुरू भी कर देता है, तो भी इसे परिसीमन के काम में लंबा वक्त लग सकता है. जैसे 2001 की जनगणना के बाद 2002 में परिसीमन आयोग बना था. उसने उसी जनगणना के आंकड़ों को आधार बनाया और इसके गठन से लेकर काम पूरा करने में मोटे तौर पर साढ़े तीन साल लग गए और 2007 में जाकर काम पूरा हुआ, जो कि 2008 से प्रभावी हुआ. मतलब, 2009 के लोकसभा चुनावों में इसकी ओर से किया गया बदलाव अमल में आ पाया.
आयोग अगर बहुत तेजी से भी काम करता है तो भी दो साल लग ही जाएंगे. इस तरह से 2029 के लोकसभा चुनाव नए परिसीमन और महिला आरक्षण के आधार पर होना मुश्किल है. सूत्रों की मानें तो सरकार को भी उम्मीद नहीं है कि 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले तक प्रक्रिया पूरी हो पाएगी. परिसीमन जब तक पूरी नहीं हो जाती है, तब तक महिला आरक्षण को भी लागू नहीं किया जा सकता है.
मोदी सरकार ने सितंबर 2023 में महिला आरक्षण कानून लेकर आई, जिसके जरिए देश की लोकसभा और राज्यों की विधानसभा में 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित रहने का प्रावधान है. इसे अमलीजामा पहनाने का निर्धारण परिसीमन के बाद होना है. ऐसे में नई जनगणना के आंकड़े के आधार पर परिसीमन और महिला आरक्षण 2029 लोकसभा चुनावों में नहीं हो पाएगा. परिसीमन के आधार पर 2034 का लोकसभा चुनाव होगा और 33 फीसदी महिला आरक्षण भी अमल में आ सकेगा.