सेना के साथ मिलकर राजा को वापस लाने की साजिश? नेपाल के जेन-Z आंदोलन पर उठने लगे सवाल

काठमांडू: नेपाल के एक प्रमुख नागरिक समाज संगठन, बृहत नागरिक आंदोलन (बीएनए) ने गुरुवार को एक बयान जारी कर आरोप लगाया कि देश में सेना की मध्यस्थता के तहत राजतंत्र की बहाली हो सकती है। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता, संघवाद, और समावेशी व्यवस्था को खत्म करने की “गंभीर साजिश” की आशंका जताई है। यह आरोप ऐसे समय में सामने आया है जब पूर्व प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद अंतरिम सरकार को लेकर गहन राजनीतिक बातचीत जारी है।

BNA में समाज के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधि शामिल हैं। उन्होंने अपने बयान में कहा कि नेपाल सेना का हाल के दिनों में राष्ट्रीय मामलों में बढ़ता हस्तक्षेप चिंताजनक है। उल्लेखनीय है कि मंगलवार से देशव्यापी सुरक्षा अभियानों की कमान सेना ने अपने हाथों में ले ली है।

‘साजिश रची जा रही है’

संगठन ने आरोप लगाया कि, “जन-Z आंदोलन के शहीदों की लाशों के ऊपर एक गंभीर प्रतिक्रियावादी साजिश रची जा रही है- जो सेना की मध्यस्थता में राजतंत्र बहाल करने और धर्मनिरपेक्षता, संघीयता तथा अनुपातिक समावेशी प्रणाली को समाप्त करने की दिशा में बढ़ रही है।” माई रिपब्लिका पोर्टल के अनुसार, BNA ने कहा कि इस तरह की कोशिशें “पूरी तरह अस्वीकार्य” हैं।

बयान में कहा गया, “हमारे आंदोलन का उद्देश्य कभी भी गणतंत्र और धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था को पलटना नहीं था और न ही सेना की असंवैधानिक सक्रियता को बढ़ावा देना। जरूरत इस बात की है कि राष्ट्रपति, संवैधानिक संरक्षक की भूमिका में, जेन-जेड क्रांति को सफलता की ओर ले जाने का मार्ग प्रशस्त करें।”

BNA ने यह भी स्पष्ट किया कि बनने वाली किसी भी नई नागरिक सरकार को संविधान की जड़ों में दृढ़ रहना होगा, भ्रष्टाचार और अव्यवस्था का प्रतिरोध करना होगा तथा “उसमें किसी भी प्रकार के प्रतिक्रियावादियों के लिए जगह नहीं होनी चाहिए।” नेपाल ने 2008 में राजतंत्र को समाप्त कर गणतंत्र की स्थापना की थी। हालांकि, इस वर्ष आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता के बीच कई बार राजतंत्र समर्थक प्रदर्शन भी देखे गए।

ओली का इस्तीफा और हिंसा

प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने मंगलवार को उस समय इस्तीफा दे दिया जब सैकड़ों प्रदर्शनकारी उनके कार्यालय में घुस गए और उनसे पद छोड़ने की मांग की। यह प्रदर्शन सोमवार को भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया प्रतिबंध के खिलाफ भड़के थे। पुलिस कार्रवाई में कम से कम 50 लोगों की मौत हुई थी। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध सोमवार रात हटा लिया गया।

नेपाल अशांति: हिंसा के पीछे साजिश की पर्यवेक्षकों की आशंका

अपने भविष्य को लेकर चिंतित नेपाल जहां नई शुरुआत की प्रतीक्षा कर रहा है, वहीं बांग्लादेश और श्रीलंका में सरकारों को हिंसक तरीके से उखाड़ फेंकने की घटनाओं से इसकी समानताएं सामने आई हैं। इसके बाद पर्यवेक्षक इस अराजकता के पीछे किसी बड़ी साजिश की आशंका पर विचार कर रहे हैं। फिलहाल, कई लोग मानते ​​हैं कि नेपाल में व्याप्त भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के खिलाफ ‘जेन जेड’ के डिजिटल विद्रोह के बाद देश कार्यवाहक अंतरिम सरकार के गठन की दहलीज पर पहुंच गया है। ऐसे में पर्यवेक्षकों को तीनों देशों में सत्ता हस्तांतरण में बड़ी समानताएं नजर आ रही हैं। ‘जेन जेड’ वे युवा हैं जिनका जन्म 1997 से 2012 के बीच हुआ है।

काठमांडू स्थित वरिष्ठ पत्रकार और ‘साउथ एशियन वीमेन इन मीडिया’ (एसएडब्ल्यूएम) की नेपाल शाखा की उपाध्यक्ष नम्रता शर्मा ने कहा, ‘‘मुझे आठ सितंबर से पहले कोई साजिश रचे जाने की आशंका नहीं दिखती, जिस दिन जेन जेड ने न्याय की मांग को लेकर स्वतःस्फूर्त विरोध प्रदर्शन आयोजित किए थे। लेकिन उसके बाद हुई बर्बरता और बेतुकी हिंसा स्पष्ट रूप से बाहरी और अज्ञात तत्वों का काम है।’’ शर्मा ने कहा कि इन लोगों की पहचान के लिए अभी तक कोई जांच नहीं हुई है और इस तरह की जांच की तत्काल जरूरत है।

उन्होंने कहा, ‘‘तनाव बढ़ना निश्चित रूप से जेन-जेड की योजना का हिस्सा नहीं था। अब ऐसा लगता है कि ये बाहरी ताकतें शुरुआती घटनाक्रम पर पैनी नजर रख रही थीं और स्थिति का फायदा उठाकर इस तरह की हरकतों के लिए उपयुक्त समय पाकर इस विवाद में कूद पड़ीं।’’ नेपाल की तरह, अगस्त 2024 में ढाका में सबसे पहले युवा, मुख्य रूप से छात्र, विवादास्पद सरकारी नौकरी कोटा प्रणाली का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतरे थे, जो जल्द ही राष्ट्रव्यापी विरोध में बदल गया। अधिकारियों ने इस विरोध का कठोरता से दमन किया।

शेख हसीना सरकार के पतन के बाद अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और अर्थशास्त्री मुहम्मद यूनुस का चयन विद्रोह का नेतृत्व कर रहे छात्रों द्वारा किया गया था। उसमें सेना सक्रिय रूप से मध्यस्थता कर रही थी। श्रीलंका में मार्च से जुलाई 2022 तक जन-आंदोलन के परिणामस्वरूप अंततः गोटाबाया राजपक्षे शासन को सत्ता से बेदखल होना पड़ा। राजपक्षे सरकार के खिलाफ आंदोलन श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन को लेकर हुआ, जिसके कारण गंभीर मुद्रास्फीति और ईंधन, घरेलू गैस और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कमी से जुड़ा आर्थिक संकट पैदा हो गया।

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