साल में एक दिन क्यों होते हैं बांके बिहारी महाराज के चरण दर्शन?

 

वृंदावन: अक्षय तृतीया पर्व इस बार ब्रज में 30 अप्रैल को मनाया जा रहा है, जहां लाखों की संख्या में से श्रद्धालु अपने आराध्य के दर्शन करने के लिए वृंदावन आने वाले हैं. वही बात की जाए विश्व प्रसिद्ध ठाकुर बांके बिहारी मंदिर को यहां अक्षय तृतीया का विशेष आयोजन किया जा रहा है, जिसमें ठाकुर बांके बिहारी महाराज साल में एक बार होने वाले भक्तों को दर्शन देने वाले हैं.

ठाकुर बांके बिहारी महाराज साल में एक ही बार भक्तों को अपने चरणों के दर्शन देते हैं. जिसके दर्शन करने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु वृंदावन आते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि इस दिन ठाकुर बांके बिहारी महाराज के चंदन लगाए हुए दर्शन होते हैं. हालांकि, बाकी सभी दिनों ठाकुर बांके बिहारी महाराज के पोशाक धारण दर्शन होते हैं और उनके पैर भी ढके होते हैं. लेकिन अक्षय तृतीया के दिन उनके पैर ढके हुए नहीं होते हैं और उनके चरण दर्शन होते हैं.

नहीं बनाया जाता फूल बंगला

अक्षय तृतीया के दिन ठाकुर बांके बिहारी मंदिर में फूल बंगला नहीं बनाया जाता है. सिर्फ और सिर्फ ठाकुर बांके बिहारी महाराज को चंदन का लेप लगाने के बाद उनके दर्शन भक्तों को मिलते हैं. साथ ही इस दिन सत्तू का भोग भी लगाया जाता है.
अक्षय तृतीया पर चंदन दर्शन और चरण दर्शन की अलग ही महिमा है और परंपरा है. इस बारे में जब मंदिर के गोस्वामी मोहन उर्फ मामू गोस्वामी से बात की गई तो उन्होंने बताया कि एक बार जब स्वामी हरिदास महाराज सैकड़ों वर्ष पूर्व बांके बिहारी महाराज की सेवा में लेने थे तो उनकी इच्छा हुई कि वह बद्रीनाथ जाए और भगवान बद्रीनाथ के दर्शन करें.

बद्रीनाथ धाम के हुए दर्शन

लेकिन उस वक्त इस तरह के संसाधन नहीं थे की आसानी से दर्शन हो सके. जिसको लेकर स्वामी हरिदास ने बांके बिहारी से अपनी परेशानी बताई. जिसके बाद बांके बिहारी महाराज ने कहा कि मैं तुमसे जैसा कहूं उसी प्रकार मेरा सिंगार करना. उस दिन अक्षय तृतीया का दिन था स्वामी हरिदास ने उसी प्रकार सिंगार किया जिस प्रकार ठाकुर बांके बिहारी महाराज ने उनको बताया था. जैसे ही वह श्रृंगार करने लगे और सिंगर पूरा हुआ तो उनको बद्रीनाथ धाम के दर्शन होने लगे.

इसके बाद उनकी इच्छा पूर्ण हो गई. तभी से चरण दर्शन का महत्व बताया जाता है और उसी दिन से चरण दर्शन ठाकुर बांके बिहारी महाराज भक्तों को देते आ रहे हैं.

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