नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद से ही सेना का एक्शन मोड नजर आ रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेना को खुली छूट दे दी है. इसके अलावा सभी तरीके फैसले लेने का भी अधिकार दे दिया है. इस बीच शिवसेना ( यूबीटी) ने अपने मुखपत्र सामना में पीएम के इस फैसले को लेकर सवाल खड़े किए हैं. सामना में सवाल पूछा गया कि सेना को छूट दे दी लेकिन पाकिस्तान को घर में घुसकर मारना है या नहीं इस बारे में नहीं बताया गया है.
सामना की संपादकीय में लिखा गया कि पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले का बदला कैसे लेना है, इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों सेनाओं को पूर्ण अधिकार दे दिए हैं. पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने की जिम्मेदारी सेना को सौंपी गई है. अब समय और लक्ष्य क्या होगा? यह भी तय करने का अधिकार सैन्य बलों को दिया गया है. पाकिस्तान के संदर्भ में क्या कदम उठाना है, इसका निर्णय प्रधानमंत्री मोदी राजनीतिक इच्छाशक्ति के आधार पर स्वयं भी ले सकते थे. आखिरकार, मोदी प्रधानमंत्री हैं और वे लगातार पाकिस्तान को सबक सिखाने की बात करते आए हैं.
आगे लिखा गया कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी पाकिस्तान के विषय में आक्रामक रुख दिखाते हैं और घर में घुसकर मारने की बात कहते रहते हैं, लेकिन अब जब निर्णय लेने की बारी आई, तब भारतीय सेना को पूरी छूट दे दी गई. घर में घुसकर मारना है या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है.
युद्ध होने न होने का फैसला पीएम ने सेना पर छोड़ा- सामना
सामना में लिखा गया कि 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जनरल सैम मानेकशॉ को सुबह बैठक में बुलाकर मार्च में ही पाकिस्तान पर हमला करने का आदेश दिया था, लेकिन जनरल मानेकशॉ ने तत्काल इनकार कर दिया. उन्होंने प्रधानमंत्री को साफ कहा कि सेना युद्ध के लिए पूर्ण रूप से तैयार नहीं है. इंदिरा गांधी इससे नाराज हुईं. मौसम, हवा, बर्फ और अन्य हालातों के कारण परिस्थिति अनुकूल नहीं बताते हुए मानेकशॉ ने इंदिरा गांधी से छह महीने का समय मांगा और सौ प्रतिशत जीत की गारंटी दी. वही युद्ध मानेकशॉ के नेतृत्व में लड़ा गया और उसमें पाकिस्तान की करारी हार हुई. पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए और यह निर्णय इंदिरा गांधी ने अपनी राजनीतिक इच्छाशक्ति के बल पर लिया था. युद्ध कहां और कैसे लड़ा जाएगा, इसके सभी अधिकार प्रधानमंत्री गांधी ने सेनाप्रमुखों को दिए, लेकिन युद्ध होगा, यह निर्णय उनका था. अब युद्ध करना है या नहीं, यह निर्णय प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय सेना पर छोड़ दिया है.
सरकार के दावों की खुली पोल
सामना में जम्मू-कश्मीर को लेकर सरकार की तरफ से किए गए दावों को लेकर भी सवाल किए गए हैं. उन्होंने लिखा कि पहलगाम हमले के बाद से ही दिल्ली में लगातार उच्च स्तरीय बैठकें चल रही हैं. कश्मीर घाटी में पर्यटकों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ४८ पर्यटनस्थलों को बंद करने का निर्णय अब गृह मंत्रालय ने लिया है. इसका मतलब कि सरकार को कश्मीर में जानेवाले लोगों की सुरक्षा को लेकर पूरा भरोसा नहीं है. कश्मीर पूरी तरह सुरक्षित है और आतंकवादमुक्त हो चुका है, सरकार जो लगातार कह रही थी, वह सच नहीं था. पर्यटन स्थल बंद करने का निर्णय जम्मू-कश्मीर सरकार ने लिया है, लेकिन कश्मीर घाटी में आतंकवादियों के स्लीपर सेल फिर से सक्रिय होने की जानकारी केंद्रीय खुफिया एजेंसियों ने दी है.
पहलगाम और पुलवामा की घटना पर उठाए सवाल
सामना में लिखा कि जानकारी मिली है कि आतंकी गतिविधियां होनेवाली हैं और कुछ प्रमुख नेताओं की जान को भी खतरा है. पहलगाम हमले के बाद आतंकवादी हमारे सुरक्षा बलों पर हमले करने की योजना बना रहे हैं, ऐसी जानकारी भी खुफिया विभाग को मिली है. खुफिया एजेंसियों का यह कार्य तारीफ के काबिल है, लेकिन सिर्फ उन्हें पहलगाम हमले की पूर्व सूचना नहीं मिली और उससे पहले पुलवामा हमले की भी खबर नहीं मिली थी. ऐसा क्यों हुआ? इसकी गंभीरता से जांच होना आवश्यक है.