यूं ही नहीं पीएम मोदी ने की तुर्की के दुश्मन मुल्क साइप्रस की यात्रा

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-7 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए कनाडा पहुंचने से पहले साइप्रस की यात्रा की है। पिछले दो दशक से भी ज्यादा समय में किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री ने साइप्रस की यात्रा नहीं की थी। ऑपरेशन सिंदूर के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा में पीएम मोदी ने इसे ही अपना पहला पड़ाव यूं ही नहीं बनाया है। मौजूदा वैश्विक माहौल में साइप्रस भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक और आर्थिक सहयोगी साबित हो सकता है। पीएम मोदी ने साइप्रस को भूमध्य क्षेत्र और यूरोपियन यूनियन (EU) में भारत का एक अहम साझीदार माना है। उनके मुताबिक उनकी यह यात्रा व्यापार, सुरक्षा, प्रौद्योगिकी,निवेश और लोगों के बीच आदान-प्रदान को बढ़ावा देने का अवसर है।

भारत का महत्वपूर्ण वैश्विक सहयोगी रहा है साइप्रस

दरअसल, भारत और साइप्रस के बीच दोस्ती बहुत गहरी है। भौगोलिक रूप से एशिया में होते हुए भी साइप्रस यूरोपीय संघ (EU) का सदस्य है। यह भारत के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है। एक तरफ साइप्रस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन करता है, तो दूसरी तरफ यह पाकिस्तान के दोस्त तुर्की जैसे मुल्क से खार खाए बैठा है। विदेश मंत्रालय के अनुसार, साइप्रस हमेशा से भारत का अच्छा दोस्त रहा है। साथ ही, इसने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते का भी समर्थन किया है। इससे भारत को अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में मदद मिली है। विदेश मंत्रालय का कहना है कि साइप्रस ने परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) में भी भारत का समर्थन किया है।

भारत के लिए और बढ़ गई है साइप्रस की अहमियत

मौजूदा वक्त में भारत के लिए साइप्रस इसलिए और भी महत्वपूर्ण हो गया है,क्योंकि इसका तुर्की के साथ छत्तीस का आंकड़ा है। यह वही तुर्की है, जिसके ड्रोन का ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया था। तुर्की दुनिया के उन दो मुस्लिम मुल्कों में से एक है (दूसरा-अजरबैजान), जो पहलगाम आतंकी हमले के बाद भी इस्लाम के नाम पर हमारे दुश्मन पड़ोसी के साथ खड़ा रहा। तुर्की कश्मीर के मुद्दे पर भी पाकिस्तान का समर्थन करता है। तुर्की ने साइप्रस के एक हिस्सा पर जबरन कब्जा कर रखा है। साइप्रस के इस उत्तर-पूर्वी हिस्से को तुर्की ने ‘तुर्की रिपब्लिक ऑफ नॉर्दर्न साइप्रस’ घोषित कर रखा है, जिसे एकमात्र तुर्की ही मान्यता देता है। यहां आज भी तुर्की की सेना मौजूद है। ऐसे में साइप्रस आज भारत के लिए और भी महत्वपूर्ण कूटनीतिक सहयोगी बन चुका है।

यूरोपीय संघ में भी बढ़ने वाला है साइप्रस का दबदबा

साइप्रस पूर्वी भूमध्य सागर में स्थित एक द्वीप है। यह तुर्की और सीरिया के पास स्थित है। एक बात और बड़ी महत्वपूर्ण है। साइप्रस 2026 की पहली छमाही में यूरोपीय संघ (EU) परिषद की अध्यक्षता करने वाला है। भारत यूरोप के साथ मजबूत व्यापार और सुरक्षा संबंध बनाना चाहता है, इसलिए साइप्रस यूरोप के देशों के बीच भी एक महत्वपूर्ण सहयोगी साबित हो सकता है। खासकर पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद को मिटाने के लिए भारत को यूरोप के मुल्कों से भी बेहतर संबंधों की आवश्यकता है।

IMEC के लिए भी भारत को साइप्रस की आवश्यकता

साइप्रस भौगोलिक रूप से भी भारत के लिए महत्वपूर्ण है। क्योंकि, यह इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (IMEC) का हिस्सा है।
IMEC एक बुनियादी ढांचा परियोजना है, जिससे भारत को कई फायदे होने की उम्मीद है। इसका उद्देश्य मध्य पूर्व से भारत और यूरोप के बीच व्यापार और कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है। इस कॉरिडोर के माध्यम से भारत को खाड़ी क्षेत्र और खाड़ी क्षेत्र को यूरोप से जोड़ने के लिए जहाज, रेल और सड़क नेटवर्क के विस्तार का मौका दे सकता है। ऐसे में साइप्रस, भूमध्य सागर में होने के कारण, इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार मध्य पूर्व में चल रहा संकट IMEC के पूरा होने में बाधा बन सकता है। ऐसे में पीएम मोदी की यह यात्रा खास तौर पर अहम मानी जा रही है।

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