Primary Education UP Govt: उत्तर प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों के विलय को लेकर विवाद लगातार गहराता जा रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी आदेश के खिलाफ याचिकाओं पर गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में सुनवाई हुई। न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार, 4 जुलाई को निर्धारित की है। वहीं, दूसरी ओर इस निर्णय के विरोध में कांग्रेस पार्टी ने लखनऊ में जोरदार प्रदर्शन करते हुए इसे बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ बताया है।
क्या है मामला: विलय का आदेश और उस पर उठे सवाल
लेकिन इस फैसले को लेकर सीतापुर के छात्रों की ओर से याचिका दायर की गई, जिसमें कहा गया कि सरकार का यह आदेश निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम 2009 का उल्लंघन है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि यह मर्जर स्कूल जाने वाले छोटे बच्चों के लिए असुविधाजनक है क्योंकि उन्हें अब अधिक दूरी तय करनी पड़ेगी। बच्चों की सुरक्षा, पहुंच और पढ़ाई में बाधा जैसे गंभीर मुद्दों को उठाते हुए याचकों ने इस पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से क्या कहा गया
राज्य सरकार का पक्ष,बच्चों के हित में है फैसला
सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता अनुज कुदेसिया और मुख्य स्थायी अधिवक्ता शैलेन्द्र कुमार सिंह ने अदालत में पक्ष रखते हुए कहा कि यह निर्णय पूरी तरह से बच्चों के हित में और शैक्षिक संसाधनों के कुशल उपयोग हेतु लिया गया है। जिन स्कूलों में छात्रों की संख्या अत्यधिक कम है, वहां शिक्षकों की उपलब्धता, गुणवत्ता और संसाधनों का प्रभावी उपयोग नहीं हो पा रहा था। राज्य सरकार ने यह भी कहा कि इस निर्णय के तहत शिक्षकों की संख्या, भवन की गुणवत्ता, डिजिटल सुविधाएं आदि बढ़ाई जाएंगी, जिससे छात्रों को बेहतर शिक्षा मिल सकेगी। सरकार ने यह भी आश्वासन दिया कि मर्जर के बाद किसी भी बच्चे की शिक्षा बाधित नहीं होगी और न ही किसी शिक्षक को सेवा से हटाया जाएगा।
हाईकोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 4 जुलाई की तारीख तय की
कांग्रेस ने किया प्रदर्शन, सरकार पर लगाया शिक्षा विरोधी होने का आरोप
अजय राय ने कहा, “सरकार प्रदेश में 5000 से अधिक विद्यालयों को बंद कर छोटे-छोटे बच्चों को शिक्षा से वंचित करना चाहती है। यदि यह निर्णय वापस नहीं लिया गया तो कांग्रेस राज्यभर में बड़ा आंदोलन करेगी।” प्रदर्शन में शहर कांग्रेस अध्यक्ष अमित त्यागी, जिलाध्यक्ष रुद्रदमन सिंह, शहजाद आलम, और अन्य नेता जैसे शिव पांडे, अनिल यादव, ममता चौधरी, शन्नो खान, इंदु गौतम आदि बड़ी संख्या में शामिल रहे।
शिक्षा क्षेत्र से जुड़े कई विशेषज्ञों ने इस निर्णय पर मिश्रित प्रतिक्रिया दी है। कुछ का मानना है कि मर्जर से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है यदि संसाधनों का सही तरीके से दोहन किया जाए। वहीं, दूसरी ओर कई शिक्षा विदों का कहना है कि यह निर्णय सामाजिक और भौगोलिक वास्तविकताओं को नजरअंदाज करता है, विशेषकर ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में जहां विद्यालय बच्चों के लिए उनकी पहुंच में होते हैं। इस मुद्दे पर राजनीतिक घमासान भी शुरू हो गया है। कांग्रेस जहां इसे जनविरोधी बता रही है, वहीं भाजपा इसे सुधारवादी और दूरदर्शी कदम बता रही है। आने वाले दिनों में यह विवाद और भी गहराने की संभावना है, खासकर जब तक कोर्ट अंतिम निर्णय नहीं देता।