कोलकाता: पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक बार फिर जातीय समीकरणों को लेकर सियासी तापमान बढ़ता दिखाई दे रहा है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीजेपी शासित राज्यों पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि मतुआ और राजवंशी समुदाय के लोगों को वहां “बांग्लादेशी” कहकर प्रताड़ित किया जा रहा है। उन्होंने इसे बंगाल की अस्मिता पर हमला बताया। इसके जवाब में भारतीय जनता पार्टी ने तीखा पलटवार किया और ममता पर “झूठे डर” के जरिए वोट बैंक साधने का आरोप लगाया है। हालांकि ममता बनर्जी के आरोपों के जवाब में प्रधानमंत्री ने टीएमसी को एक बार फिर घुसपैठियों के साथ जोड़ दिया।
ममता बनर्जी का आरोप-
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल ही में एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा उठाते हुए दावा किया कि देश के विभिन्न राज्यों में रहने वाले मतुआ और राजवंशी समुदाय के लोगों को टारगेट किया जा रहा है। उनके अनुसार, इन समुदायों के खिलाफ गिरफ्तारी और उत्पीड़न की घटनाएं सामने आ रही हैं। उन्होंने इसे बंगाल की संस्कृति, अस्मिता और नागरिक अधिकारों के खिलाफ साजिश बताया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ममता बनर्जी का यह बयान आगामी 2026 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर दिया गया है, ताकि दलित और सीमांत वर्ग के मतदाताओं का समर्थन सुनिश्चित किया जा सके।
बीजेपी का पलटवार: “घुसपैठियों की पैरवी”-
ममता बनर्जी के आरोपों का जवाब देते हुए बीजेपी ने टीएमसी पर पलटवार किया। बीजेपी ने ममता पर झूठ फैलाकर राजनीतिक लाभ लेने का आरोप लगाया और कहा कि टीएमसी बार-बार घुसपैठियों के मुद्दे पर बंगाल की जनता को गुमराह करती रही है। बीजेपी ने यह भी कहा कि नागरिकता संशोधन कानून (CAA) लागू करके उसने मतुआ समुदाय को नागरिकता देने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं, जबकि टीएमसी इस प्रक्रिया में बाधा बनती रही है।
बंगाल की राजनीति में क्यों अहम हैं मतुआ और राजवंशी-
मतुआ और राजवंशी समुदाय पश्चिम बंगाल की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
- मतुआ समुदाय, जिसे नमशूद्र भी कहा जाता है, पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आए हिंदू शरणार्थी दलितों का सबसे बड़ा समूह है। अनुमानतः इनकी आबादी राज्य में 1.75 से 2 करोड़ के बीच है, जो कुल अनुसूचित जाति (SC) आबादी का लगभग 17–18% है।
- यह समुदाय नॉर्थ और साउथ 24 परगना, नदिया, कूचबिहार, मालदा, हावड़ा और हुगली जैसे जिलों में प्रभावी है। राज्य की करीब 11 लोकसभा सीटों पर इनका सीधा असर है।
- राजवंशी समुदाय की आबादी करीब 50 लाख मानी जाती है और यह खासकर उत्तरी बंगाल—कूचबिहार, अलीपुरद्वार, जलपाईगुड़ी, दार्जिलिंग और मालदा में प्रभावशाली है।
2019 के लोकसभा चुनाव में इन दोनों समुदायों ने भारी संख्या में बीजेपी का समर्थन किया था। बनगांव से शांतनु ठाकुर, जो खुद मतुआ समुदाय से हैं, चुनाव जीतकर केंद्रीय मंत्री बने।
टीएमसी की योजनाएं और राजनीतिक संतुलन-
2021 के विधानसभा चुनाव से पहले टीएमसी ने इन समुदायों को साधने के लिए कई योजनाएं शुरू कीं।
- मतुआ समुदाय को जमीन का अधिकार, भाषा बोर्ड की स्थापना, छुट्टियां और छात्रवृत्ति जैसी सुविधाएं दी गईं।
- वहीं राजवंशी समाज के लिए स्थानीय न्यायालय, सांस्कृतिक परियोजनाएं और विकास योजनाएं शुरू की गईं।
इन कदमों का असर 2021 के विधानसभा नतीजों में दिखा, जहां दोनों समुदायों का एक हिस्सा टीएमसी के पक्ष में गया।
2024 चुनाव और सीएए का प्रभाव-
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) लागू किया, जिससे मतुआ समुदाय के बीच एक बार फिर नागरिकता मिलने की उम्मीद जगी और बीजेपी को समर्थन मिला। हालांकि, टीएमसी भी अपने सामाजिक योजनाओं और लोकल जुड़ाव के जरिए मतदाताओं के एक हिस्से को अपने साथ बनाए रखने में सफल रही।
2026 चुनाव से पहले सियासी बिसात-
ममता बनर्जी का हालिया बयान साफ संकेत देता है कि टीएमसी मतुआ और राजवंशी समुदायों को फिर अपने पाले में लाने की रणनीति पर काम कर रही है। उनका यह संदेश साफ है कि टीएमसी ही इन समुदायों की सच्ची हितैषी है, जबकि बीजेपी केवल चुनावी लाभ के लिए उनका इस्तेमाल करती है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि आगामी महीनों में यह मुद्दा और अधिक गहराएगा, क्योंकि दोनों दल इन समुदायों के समर्थन के लिए पूरी ताकत झोंकने को तैयार नजर आ रहे हैं।