द्वारका में एक ऐसा घर जहां प्लास्टिक की है नो एंट्री

नई दिल्ली : इस भागमभाग भरी जिंदगी में जहां प्लास्टिक के उत्पाद हमारे जीवन का पर्याय बन चुके हैं, द्वारका प्रोग्रेसिव क्लब की फाउंडर उर्मिला शर्मा प्लास्टिक फ्री दिनचर्या बीते कई सालों से फॉलो कर रही हैं। अपने कार्बनफुट प्रिंट को कम कर वह पर्यावरण तो बचा ही रहीं हैं, अपने से जुड़े लोगों को भी प्रेरित कर रही हैं। उर्मिला ने बताया कि उनका घर जीरो वेस्ट वाला घर है। प्लास्टिक की नो एंट्री है। गीले कूड़े से वह खाद बनाती हैं। सूखे कूड़े को वह जितना हो सके उसका घरेलू इस्तेमाल करती हैं, इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट को वह नियमों के तहत एकत्रित कर ऐसी एजेंसियों को देती हैं जो उनका रीयूज करती हैं।

उर्मिला शर्मा फॉलो कर रहीं प्लास्टिक फ्री दिनचर्या

उनके जानने वाले भी इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट उन्हें ही दे कर चले जाते हैं। अपने साथ वह कांच की बोतल और एक स्टील की बोतल रखती हैं। कांच की बोतल में पानी भरती हैं और रास्ते में जूस या चाय लें तो स्टील की छोटी बोतल का इस्तेमाल करती हैं। लंच वह अपने साथ ही पैक करके ले जाती हैं। ट्रांसपोर्ट के लिए वह गाड़ी का इस्तेमाल तभी करती हैं जब जाने वाले कम से कम तीन लोग हों। अन्यथा वह मेट्रो या बस में चलती हैं। उनके पास एक प्लास्टिक का थैला रहता है।

कार्बन फुटप्रिंट बताने वाला ऐप

उर्मिला ने बताया कि एक ऐप है कैप्चर (CAPTURE) जो बताती है कि आपने अपना कार्बन फुटप्रिंट कितना कम किया। यह ऐप बताती है कि यदि आप वेजिटेरियन हैं तो खाना खाने से आप एक दिन में 3.8 किलो सीओ-2 का उत्सर्जन करते हैं। इसे आप अपनी एक्टिविटीज से कम कर सकते हैं। मसलन गाड़ी के इस्तेमाल से आपका उत्सर्जन बढ़ जाता है, पब्लिक ट्रांसपोर्ट से कम होता है, AC के उपयोग से आपका उत्सर्जन बढ़ जाता है तो वहीं पेड़ लगाकर आपका उत्सर्जन कम हो जाता है।

द्वारका प्रोग्रेसिव क्लब में वह महिलाओं को रोजगार प्रदान करवाती हैं। वह मसालों की इको फ्रेंडली पैकेजिंग करवाती हैं। यह पैकेजिंग छोटे साइज में ही होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि कपड़ों के थैलों में नमी जाने की गुंजाइश रहती है। इसलिए पंद्रह दिन के हिसाब से पैकेजिंग होती है। वह बताती हैं कि इसके अलावा निरंकारी भवन ने भी स्टील के बर्तन खरीद लिए हैं। उन्हें मनाने के लिए उनके वॉलंटियर वहां बर्तन साफ करने की सेवा भी दे रहे हैं।

उन्होंने कहा कि समय अनुसार उन्होंने भी यह सेवा की है। यहां प्रतिदिन पहले डिस्पोजेबल बर्तनों में भंडारा हो रहा था। अब आप समझिए कितना प्लास्टिक वेस्ट कम हो रहा है। कुछ अपार्टमेंट ने भी बर्तन बैंक बना लिए हैं। अपार्टमेंट के फंक्शन या सोसायटी के सदस्य के प्राइवेट फंक्शन में अब इन बर्तनों का इस्तेमाल होता है। 2002 में द्वारका में कुछ बच्चों को कूड़ा चुनते हुए देखकर उन्होंने यह काम शुरू किया था। जिसके बाद यह काम बढ़ता गया। अब उनके साथ सैकड़ों लोग जुड़े हुए हैं।

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