देहरादून: उत्तराखंड हाई कोर्ट ने देहरादून के विकास नगर क्षेत्र में झुग्गी वासियों के घरों को तोड़ने पर रोक लगा दी है. कोर्ट का कहना है कि तोड़फोड़ करने के नोटिस नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं. एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर शनिवार को मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की.
सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि झुग्गीवासियों सुनवाई का अवसर दिए बिना ही तोड़फोड़ करने के नोटिस जारी कर दिए गए जो कि सही नहीं है. बेंच ने आदेश दिया कि कोर्ट के अगले आदेश तक तोड़फोड़ पर रोक रहेगी. कोर्ट के इस आदेश से झुग्गीवासियों को बड़ी राहत मिली है.
संपत्तियों को ध्वस्त करने का मिला नोटिस
जनहित याचिका के मुताबिक याचिकाकर्ता देहरादून जिला स्थित विकास नगर के विभिन्न गांवों के निवासी हैं और देश के वैध नागरिक हैं. उन्हें 5 अप्रैल को नोटिस मिले थे. इन नोटिस में कहा गया है कि उनकी संपत्तियों को ध्वस्त किया जाना है क्योंकि वो जल निकायों, मौसमी जल धाराओं और नालों पर बने हैं. याचिका में दावा किया गया है कि प्रशासन ने संपत्ति के विवरण की पुष्टि किए बिना ही नोटिस जारी कर दिए.
संपत्ति के वैध दस्तावेज मौजूद
याचिका में यह भी कहा गया है कि नोटिस पाने वाले ज्यादातर लोग अशिक्षित हैं और समाज के निचले तबके से आते हैं जिन्हें परिणामों के बारे में कोई भी सही जानकारी नहीं है. इसके साथ ही यह भी दावा किया गया है कि जिन लोगों को नोटिस जारी किए गए उनके पास अपना मालिकाना हक साबित करने के लिए संपत्ति के वैध दस्तावेज हैं और उनमें से ज्यादातर का जल निकायों और जल धाराओं से कोई लेना-देना नहीं है.
वहीं सैटेलाइट से प्राप्त इलाके की तस्वीरों से पता चलता है कि जिन लोगों को तोड़फोड़ के नोटिस मिले हैं, वो मौसमी जल धाराओं, नालों और जल निकायों से बहुत दूर रहते हैं. उनके घर वहां नहीं हैं. याचिका में यह भी बताया गया है कि पीड़ित 15 अप्रैल तक हाई कोर्ट में सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, अपने स्वामित्व को साबित करने वाले संपत्ति के दतावेज दाखिल करेंगे.