नीतीश के लव-कुश समीकरण पर आकाश की नजर, यूपी की तरह क्या बिहार में कुर्मी-कोइरी को साध पाएगी बसपा

 

बिहार विधानसभा चुनाव 225 की सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. 20 साल पहले सीएम नीतीश कुमार ने जिस लव-कुश फॉर्मूले के जरिए आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव से सत्ता छीन ली थी. अब बहुजन समाज पार्टी उसी लव-कुश समीकरण के जरिए जेडीयू की सियासी जमीन कब्जाने का ताना-बाना बुनने में जुट गई है. बसपा के राष्ट्रीय चीफ कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद ने छत्रपति शाहूजी महाराज की जयंती पर पटना में जिस तरह से चुनावी हुंकार भरी है, उससे साफ है कि बसपा ने बिहार चुनाव पूरे दमखम के साथ लड़ने के लिए ताल ठोक दी है.

आकाश आनंद ने गुरुवार को बिहार की सियासी पिच पर उतरते हुए अपने सियासी तेवर दिखा दिए हैं. छत्रपति शाहूजी महाराज की जयंती के मौके पर पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में आयोजित सम्मेलन में आकाश आनंद बसपा को नई उम्मीद जगाने के साथ-साथ जातीय समीकरण को भी साधते हुए नजर आए. यूपी में जिस तरह से मायावती ने एक समय अपने दलित वोटबैंक के साथ कुर्मी-कोइरी समीकरण बनाए थे, उस तरह से बिहार में आकाश आनंद कुर्मी-कोइरी वोट साधते नजर आए.

शाहूजी महाराज के सहारे आकाश का दांव

छत्रपति शाहूजी महाराज की जयंती पर आकाश आनंद ने कहा कि जिस तरह मायावती ने उत्तर प्रदेश में दलित, पिछड़े और अति पिछड़ों को साथ लेकर इतिहास रचा है, उसी तरह बिहार में भी बसपा एक नया सामाजिक परिवर्तन लेकर आएगी. मायावती ने शाहूजी महाराज की स्मृति में गरीबों को जमीन देकर और शिक्षा को बढ़ावा देकर उत्तर प्रदेश में महत्वपूर्ण काम किया है, जिसे बिहार में भी दोहराया जाएगा.

आकाश आनंद ने छत्रपति शाहूजी महाराज को सामाजिक क्रांति का अग्रदूत बताते हुए कहा कि शाहूजी पहले शासक थे, जिन्होंने 50 प्रतिशत आरक्षण लागू कर दलित-पिछड़ों को समाज में सम्मान दिलाया. उन्होंने जातिवाद, अंधविश्वास और महिला विरोधी सोच के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ी. उन्होंने कहा कि शाहूजी ने सिर्फ शासन नहीं किया बल्कि समाज को दिशा दी. यही वजह है कि उन्होंने बाबा साहेब अंबेडकर की उच्च शिक्षा का खर्च उठाकर एक नई परंपरा की शुरुआत की. बिहार में ऐसे ही नेतृत्व की जरूरत है, जो दलित, पिछड़े और अतिपिछड़े समाज को नई दिशा दिखा सके.

कुर्मी-कोइरी वोटों पर बसपा की नजर

बसपा ने बिहार में अकेले चुनावी मैदान में उतरने का ऐलान कर रखा है. बिहार की सभी 243 सीट पर बसपा प्रत्याशी उतारेगी. ऐसे में बसपा की स्ट्रेटेजी दलित के साथ कुर्मी-कोइरी समीकरण बनाने की है. इसी रणनीति के तहत बसपा ने छत्रपति शाहूजी महाराज की जयंती के बहाने पटना में एक सम्मेलन किया, जिसके मुख्य अतिथि आकाश आनंद थे. आकाश आनंद ने शाहूजी महाराज के सहारे बिहार के प्रभावशाली पिछड़ी जाति कुर्मी-कोइरी को साधने का दांव चला.

छत्रपति शाहूजी महाराज कुर्मी समाज से आते थे और बिहार के बसपा प्रदेश अध्यक्ष अनिल कुमार भी कुर्मी जाति से हैं. इस तरह बसपा बिहार में दलित वोटों के साथ-साथ कुर्मी और कोइरी वोटों को अपने सियासी पाले में करने की फिराक में है. बसपा संस्थापक कांशीराम ने यूपी में दलितों के साथ-साथ अतिपिछड़ी जातियों को साधने की कवायद की थी. 2007 के चुनाव तक यूपी में कुर्मी-कोइरी बसपा का कोर वोटबैंक हुआ करते थे, जिसके सहारे मायावती मुख्यमंत्री बनी थी. अब इसी समीकरण को बिहार में दोहराने का दांव चला है.

नीतीश के लव-कुश को साधेगी बसपा

बिहार की सियासत पूरी तरह जाति के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. बिहार में अगड़ी जातियों के खिलाफ त्रिवेणी संघ बना था, जिसे कुशवाहा, कुर्मी और यदुवंशियों ने मिलकर बनाया था. लालू यादव यादव-मुस्लिम और ओबीसी समीकरण से सत्ता पर काबिज हुए तो नीतीश कुमार ने कुर्मी और कुशवाहा समीकरण के जरिए जड़ें जमाईं. नीतीश ने पटना के गांधी मैदान में कुर्मी और कोइरी समुदाय की बड़ी रैली की थी, जिसका लव-कुश नाम दिया गया था.

नीतीश कुमार ने लालू यादव के सामने खुद को स्थापित करने के लिए लव-कुश दांव चला था. इस फॉर्मूले के जरिए नीतीश ने 2005 में बिहार की सत्ता की कमान संभाली और अभी तक काबिज हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लव-कुश यानी कुशवाहा-कुर्मी समीकरण के सहारे खुद को सत्ता के करीब रखा है, लेकिन इस समीकरण को बसपा साधने में जुट गई है. बसपा की दलित वोटों के साथ-साथ कुर्मी और कोइरी समीकरण बनाने के लिए आकाश आनंद यूपी में मायावती के द्वारा किए गए कामों का उदाहरण दे रहे हैं.

बिहार में कुर्मी और कोइरी समीकरण

बिहार में कुर्मी समुदाय की आबादी 2.5 प्रतिशत संख्या तो कोइरी 5 फीसदी है. इस तरह से दोनों मिला दें तो साढ़े सात फीसदी होता है. माना जाता है कि ये वोट बैंक किसी यू -टर्न में नहीं छिटकता और नीतीश के साथ रहता है, लेकिन अब इस वोटबैंक पर बीजेपी से लेकर आरजेडी ही नहीं बल्कि बसपा भी नजर गढ़ाए हुए हैं. बसपा दलित के साथ कुर्मी और कोइरी समीकरण को बनाकर अपनी सियासी जड़े जमाने की फिराक में है, लेकिन ये आसान नहीं है. बसपा का बिहार में बहुत ज्यादा असर कभी नहीं रहा है. इसके अलावा बसपा के जीतने वाले विधायक पार्टी बदल लेते हैं.

हालांकि, उत्तर प्रदेश से सटे बिहार के इलाकों में बसपा का अपना जनाधार रहा है. गोपालगंज, चंपारण और शाहाबाद क्षेत्र बसपा का मजबूत पॉकेट माना जाता है. पार्टी दलित वोट में पिछड़ा और अति पिछड़ा का तड़का लगाना चाहती है. इसी क्रम में शाहूजी महाराज की जयंती मनाई गई और जाति विशेष को साधने की कोशिश हुई , लेकिन बसपा अकेले चुनाव लड़कर क्या सियासी गुल खिला पाएगी, ये बड़ा सवाल है.

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