वो 8 वजहें, जिससे बांग्लादेश में यूनुस के खिलाफ बढ़ने लगी नाराजगी, निकल रहीं विरोधी रैलियां

 

नई दिल्ली: दो दिन पहले बांग्लादेश में बहुत बड़ी रैली निकली. वैसे बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के खिलाफ असंतुष्ट और नाराज लोगों की बड़ी रैलियां लगातार निकल रही हैं. हाल के दिनों में ढाका सहित देश के कई हिस्सों में हजारों लोग सड़कों पर उतर आए. इन प्रदर्शनों में मुख्य रूप से बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) और उससे जुड़े संगठनों के कार्यकर्ता, सरकारी कर्मचारी, शिक्षक, छात्र और आम नागरिक शामिल रहे.

डॉ. मोहम्मद यूनुस का नाम अब तक जब बांग्लादेश में लिया जाता था तो साथ में उनके ‘गरीबी हटाओ’ मॉडल और नोबेल पुरस्कार की चर्चा होती थी. ‘ग्रामीण बैंक’ की स्थापना कर उन्होंने बांग्लादेश की गरीब महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करने का जो सपना बुना था, वह भी कई सालों तक सराहा गया लेकिन अब बांग्लादेश के लोग उनसे बेसाख्ता नाराज दीख रहे हैं. उनके काम करने के तौरतरीकों पर आवाज उठ रहे हैं. एक बड़ा मुद्दा जानबूझकर चुनावों को टालना है. इससे यूनुस की लोकप्रियता में गिरावट आई है.

राजनीतिक सत्ता से टकराव, अदालतों में चल रहे मुकदमे, विदेशी प्रभाव के आरोप और श्रमिक शोषण के मामले जैसे कई कारणों ने बांग्लादेशी समाज के एक हिस्से को यूनुस के खिलाफ खड़ा कर दिया है. वहां महंगाई बढ़ रही है. देश का सबसे रेडिमेड गारमेंट उद्योग कराह रहा है. अव्यवस्थाओं का बोलबाला है. हम यहां उन पांच बड़ी वजहों को जानेंगे, जिसके चलते बांग्लादेश में डॉ. यूनुस को लेकर नाराज़गी बढ़ती जा रही है.

बांग्लादेश में डॉ. मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने अगस्त 2024 में बागडोर संभाली थी. उनके शासनकाल में कई विवादास्पद फैसले लिए गए और जिस तरह से कई नीतियां बनीं, उससे जनता में असंतोष बढ़ता जा रहा है.

1. चुनावों में देरी से लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर संदेह

संविधान के अनुसार, अंतरिम सरकार को 90 दिनों के भीतर आम चुनाव कराने थे. हालांकि, यूनुस ने चुनावों की समयसीमा को दिसंबर 2025 से जून 2026 तक बढ़ा दिया है, जिससे विपक्षी दलों और नागरिक समाज में असंतोष है. बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) और सेना प्रमुख जनरल वाकर-उज़-ज़मान ने जल्द चुनाव कराने की मांग की है, जबकि यूनुस सरकार का कहना है कि पहले आवश्यक सुधारों को लागू करना जरूरी है.

BNP और अन्य विपक्षी दलों की मांग है कि इस साल के अंत तक आम चुनाव कराए जाएं. इसी मुद्दे को लेकर राजधानी ढाका में हाल ही में हजारों लोगों ने ‘फासीवाद खत्म करो’ जैसे नारे लगाते हुए रैली निकाली, जिससे शहर के मुख्य मार्ग पूरी तरह जाम हो गए और कामकाज ठप पड़ गया.

जुलाई विद्रोह के प्रदर्शनकारी और छात्र संगठन भी यूनुस सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर चुके हैं, जिनकी मांगें घायल छात्रों के पुनर्वास और आंदोलनकारियों को मान्यता देने से जुड़ी हैं.

2. लगातार गिरफ्तारियां और मानवाधिकारों का उल्लंघन

फरवरी 2025 में शुरू हुए ‘ऑपरेशन डेविल हंट’ के तहत, सरकार ने शेख हसीना के समर्थकों और विपक्षी नेताओं के खिलाफ व्यापक कार्रवाई की. इस अभियान में अब तक 11,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिसमें कई पूर्व मंत्री और छात्र नेता शामिल हैं. मानवाधिकार संगठनों ने इस अभियान की आलोचना की है और इसे राजनीतिक प्रतिशोध करार दिया है.

3. कर्मचारियों और शिक्षकों का आंदोलन

यूनुस सरकार द्वारा लाए गए एक नए अध्यादेश के खिलाफ सरकारी कर्मचारी और शिक्षक भी हड़ताल और प्रदर्शन कर रहे हैं. इस अध्यादेश के तहत कर्मचारियों को बिना उचित प्रक्रिया के बगैर ही 14 दिनों में बर्खास्त किया जा सकता है, जिसे ‘दमनकारी’ बताया जा रहा है. इन आंदोलनों के कारण ढाका में सुरक्षा बलों की तैनाती करनी पड़ी है. इसे लेकर भी बहुत नाराजगी है.

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4. आर्थिक संकट और जीवन यापन में बढ़ती दिक्कतें

यूनुस सरकार के कार्यकाल में लोगों की आर्थिक स्थिति बिगड़ती जा रही है. मुद्रास्फीति 9% से ऊपर बनी हुई है, विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आई है. विदेशी निवेश में 71% की कमी आई है. इसके अलावा, टैक्स प्रणाली में सुधार के प्रयासों ने आम जनता पर अतिरिक्त बोझ डाला है, जिससे जीवन यापन और कठिन हो गया है.

5. सत्ता का दुरुपयोग और हितों का टकराव

यूनुस के नेतृत्व में उनकी संस्थाओं को विशेष लाभ दिए गए हैं. ग्रामीण यूनिवर्सिटी की स्थापना, ग्रामीण टेलीकॉम को डिजिटल वॉलेट सेवा की अनुमति और ग्रामीण बैंक में सरकारी हिस्सेदारी को 25% से घटाकर 10% करना, ऐसे कदम हैं जिनसे सत्ता के दुरुपयोग और हितों के टकराव के आरोप लगे हैं. इसके अलावा, यूनुस और उनके सहयोगियों के खिलाफ चल रहे मामलों को बिना मुकदमे के समाप्त कर दिया गया है.

6. अल्पसंख्यकों की सुरक्षा में विफलता

अगस्त 2024 से दिसंबर 2024 के बीच बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद ने 2,000 से अधिक सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं की रिपोर्ट की है, जिसमें 23 लोगों की मौत हुई है. सरकार पर आरोप है कि उसने इन घटनाओं को रोकने में विफलता दिखाई है. अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की है.

7. प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश

यूनुस सरकार के कार्यकाल में पत्रकारों पर दमनात्मक कार्रवाई की गई है. 354 से अधिक पत्रकारों को परेशान किया गया है, 74 पर हिंसा के मामले दर्ज किए गए हैं. 167 की प्रेस मान्यता रद्द की गई है. इससे प्रेस की स्वतंत्रता पर गंभीर सवाल उठे हैं.

8. भारत के साथ तनावपूर्ण संबंध

यूनुस ने भारत पर बांग्लादेश को अस्थिर करने का आरोप लगाया, जिसे भारत ने खारिज कर दिया है. भारत ने इसे आंतरिक समस्याओं से ध्यान भटकाने की कोशिश बताया है. वैसे युनुस लगातार भारत से संबंध बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं, इससे उल्टे बांग्लादेश पर ही असर पड़ रहा है. भारत से बड़ी तादाद में सामान और कच्चा माल वहां जाता था, जो जाना बंद हो चुका है. इस किल्लत ने वहां खाने पीने पर तो असर डाला ही, साथ ही वहां के मुख्य रेडिमेड उद्योग को पटरी से उतार दिया है.

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